सिनर्जी वेन्चर के रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. से बाकी 12.5 करोड़ मिलने का रास्ता साफ
नई दिल्ली [भारत], 4 दिसंबर: केन्द्र की मोदी सरकार का लाभार्थी, समाज का हर वो वर्ग है, जो देश के उत्थान में सहगामी है, अर्थ जगत के व्यापारी, कारोबारी, उद्यमी इससे अलग नही है। जिनके कारोबार में सुगमता के लिए मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण एवं नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल का गठन कर दिया। जिसके लाभार्थी होने का एक ज्वलंत उदाहरण काशी के प्रतिष्ठित व्यापारी रजत मोहन पाठक के प्रतिष्ठान सिनर्जी वेन्चर है। जिसके 12.5 करोड़ रूपये जो रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. से ऐसे सख्त एवं फास्टट्रैक कानून के अभाव में वापस नही मिलने की स्थिति में था, वो अब नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के 19 नवम्बर 2024 के आदेश से सिनर्जी वेन्चर को मिलने की राह पर बढ़ चला है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) भारत में एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, जो कंपनी अधिनियम के तहत भारतीय कंपनियों के विवादों का समाधान करते हुए न्यायिक कार्यवाही के तहत सभी मध्यस्थता, समझौता, व्यवस्था, पुनर्निर्माण और कंपनियों के समापन के माध्यम से निर्णय लेता है। जिसका गठन कंपनी अधिनियम 2013 के तहत 2016 में केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा किया गया था। यह केन्द्र की मोदी सरकार का कम्पनियों को दिया एक बड़ा वरदान है, जिससे अपने पूंजी ही नही बल्कि उस पूंजी से हजारों लोगों के रोजगार की सुरक्षा दीवार बना दी है, ताकि उनके घरों के चूल्हे जलते रहे और परिवार आगे बढ़े।
यहां मिले न्याय से संतुष्ट न होने पर अपील के लिए नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) का गठन किया गया है। एनसीएलएटी दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (आईबीसी) की धारा 61 के तहत एनसीएलटी (एस) द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण भी है, जो 1 दिसंबर, 2016 से प्रभावी है। जो इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ भी न्यायिक अधिकार रखती है।
इस राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण कानून की ताकत का अन्दाजा इसी बात से लगा सकते है कि 40 कम्पनियों में हिस्सेदारी रखने वाले मुकेश खुराना जो कि गोदरेज, एसीई (एस) जैसी कम्पनियों का पार्टनर है। वही दिग्गज क्रिकेटर और पूर्व सांसद गौतम गंभीर रुद्र बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व निदेशक रह चुके है। खुराना परिवार मुकेश खुराना, पत्नि बबीता खुराना, पुत्र रूद्र खुराना की केवल 23 कम्पनियों की बात करें तो मिनिस्ट्री आफ कारपोरेट अफेयर्स (एमसीए) के डाटा के अनुसार ये कम्पनियां बीते पांच वर्षों में औसतन लगभग 110 करोड़ रूपये सालाना टीडीएस के रूप में जमा करती है। जबकि यह परिवार 53 कम्पनियों का मालिकाना हक रखता है। वही 2000 करोड़ की रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. के मालिक मुकेश खुराना पर बेइमानी का आरोप लगाने वाली सिनर्जी वेन्चर ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) कोर्ट में 12.5 करोड़ बेइमानी का आरोप लगाते हुए पैसा दिलाने का अनुरोध किया है।
सिनर्जी वेन्चर के पक्षकार एवं सुप्रीमकोर्ट के सिनियर एडवोकेट शिवम कुमार ने बताया कि राजेन्द्र मोहन पाठक एवं रजत मोहन पाठक दो लोगों की एसोसिएशन आफ पर्सन (एओपी) सिनर्जी वेन्चर द्वारा रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. में इनवेस्ट किये गये पूंजी के बदले सिनर्जी वेन्चर को रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. से रिटर्न मिलता रहा, इस दौरान 07 नवम्बर 2014 को सिनर्जी वेन्चर (एओपी) के एक सदस्य राजेन्द्र मोहन पाठक के निधन के बाद यह जानकारी उसी समय रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. को आधिकारिक रूप से दे दी गई और यह भी बताया गया कि अब यह एओपी, एकल स्वामियत्व वाली प्रोपराइटरशिप प्रतिष्ठान हो गई है और अब इसके प्रोपराइटर स्व.राजेन्द्र मोहन पाठक के इकलौते पुत्र एवं सिनर्जी वेन्चर (एओपी) के दूसरे सदस्य रजत मोहन पाठक है। जिसके बाद भी रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. ने वर्ष 2016-17 तक रिटर्न देना जारी रखा। वर्ष 2017-18 में अचानक से बेईमानी पर पैर रखते हुए रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. ने रिटर्न देने से मना कर दिया। कई दौर की वार्ता के बाद भी जब बात नही बनी, तब रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. से अपने बकाया राशि दिलाने के लिए सिनर्जी वेन्चर 19 सितम्बर 2021 को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) कोर्ट में अर्जी लगाई। 07 फरवरी 2022 से सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई के दौरान रूद्रा बिल्डवेल प्रोजेक्ट प्रा.लि. ओर से कहा गया कि एकल मालिकाना हक होने के कारण उन्होने रिटर्न देना बन्द कर दिया है, जो कि कम्पनी अधिनियम के अनुसार है। विगत 22 सुनवाइयों के बाद 19 सितम्बर 2023 को अपना फैसला देते हुए कहा कि जब एओपी सिनर्जी वेन्चर ने पूंजी इनवेस्ट किया था, तब उसमें दो सदस्य थे। लेकिन अब एओपी के प्रोपराइटशिप में तब्दिल हो जाने से यह याचिका उचित नही है। एनसीएलटी के इस फैसले को दस दिन के बाद ही नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) में सिनर्जी वेन्चर द्वारा चुनौती दी गई।
सिनर्जी वेन्चर के पक्षकार एवं हाइकोर्ट के सिनियर एडवोकेट उदय चन्दानी ने बताया कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) नई दिल्ली के बेंच-6 के फैसले के विरूद्ध नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) कोर्ट में 19 फरवरी 2024 को अपील की गई। बीते नौ महीने में हुए सुनवाई के बाद 19 नवम्बर 2024 को जस्टिस योगेश खन्ना एवं अजय दास मेहरोत्रा ने सिनर्जी वेन्चर के अर्जी को सही ठहराते हुए पुनः एनसीएलटी कोर्ट, नई दिल्ली में प्रोपराइटर रजत मोहन पाठक के नाम से पुनः याचिका दाखिल करने का आदेश पारित किया है, ताकि गुण दोष के आधार पर सिनर्जी वेन्चर के साथ न्याय हो सके।
सिनर्जी वेन्चर के प्रोपराइटर रजत मोहन पाठक ने भारतीय न्यायपालिका पर भरोसा जताते हुए कहा कि यह लड़ाई महज दो कम्पनियों की नही वरन छोटे व्यापारियों, उद्योगपतियों, कम्पनियों के अस्तित्व की है। जिन्हे बड़े बड़े पूंजीपति कानूनी पेंचिदगी में उल्झाकर सालों परेशान और हताश ही नही आर्थिक व मासिक रूप से दिवालिया तक बना देते थे। केन्द्र की मोदी सरकार ने उद्योग और व्यापार जगत की इस सबसे बड़ी समस्या को समझा और बेईमान पूंजीपतियों पर नकेल कसकर अर्थ जगत को मजबूत करने के लिए एनसीएलटी एवं एनसीएलएटी के रूप में एक सधा और ताकतवर हथियार दिया है। जिसके लिए अर्थ जगत हम जैसे छोटे इन्वेस्टर, व्यापारी, उद्योगपति उनके आभारी है। अगर यह फास्ट ट्रैक कानून नही होता तो हम जैसे लोग अपनी पूंजी गवां बैठते, कोर्ट के चक्कर काट रहे होते या फिर दिवालिया हो जाते। उस पूंजी के माध्यम से रोजगार पाने वाले लाखों लोगों के चूल्हे की आंच पर असर होता सो अलग। इस कानून ने केवल व्यापारी, उद्योगपति, कम्पनियों को ही नही उनसे जुड़े लाखों लोगों के हाथों को एक अचूक ब्रम्हास्त्र दिया है, ताकि कोई उनके साथ बेइमानी न कर सके। जो दूसरों को कमजोर समझ कर उन्हे दिवालिया बनाने निकले, ऐसे बेईमानों को मोदी सरकार द्वारा गठित एनसीएलएटी का ‘‘दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (आईबीसी) कानून’’ दिवालिया बना दे।
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